हरिद्वार: स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने हाल ही में अपने प्रवचनों में जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दो संसाधनों—धन और समय—के संरक्षण का गहरा संदेश दिया। उनका कहना है कि ये दोनों संसाधन अगर सही तरीके से उपयोग न किए जाएं, तो जीवन में असंतुलन, तनाव और दुःख का कारण बन सकते हैं।
- समय की बर्बादी है आत्मघात के समान
स्वामी जी के अनुसार समय सबसे मूल्यवान संपत्ति है। उन्होंने कहा, “जिसने समय को खो दिया, उसने जीवन को खो दिया।” आधुनिक जीवनशैली में सोशल मीडिया, अनावश्यक बातचीत और विलासिता में समय गंवाना आत्म-विनाश के बराबर है। - धन का दुरुपयोग बन सकता है विनाश का कारण
धन का सही उपयोग केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। स्वामी जी ने बताया कि यदि धन का उपयोग धर्म, सेवा और समाज हित में नहीं किया गया, तो वह विनाश का कारण बन सकता है। - संसाधनों का संतुलित उपयोग ही जीवन का सार है
उन्होंने समझाया कि व्यक्ति को अपने संसाधनों का संतुलित और विवेकपूर्ण प्रयोग करना चाहिए। अनावश्यक खर्चों, दिखावे और तामझाम से दूर रहना ही सच्ची सम्पन्नता है। - आत्मचिंतन और अनुशासन है समाधान का मार्ग
धन और समय के दुरुपयोग से बचने के लिए आत्मचिंतन, साधना और अनुशासन जरूरी हैं। स्वामी जी कहते हैं, “जब तक व्यक्ति स्वयं को नहीं समझता, तब तक वह अपने संसाधनों को भी नहीं समझ सकता।”
आध्यात्मिक दृष्टि से यह संदेश क्या कहता है?
स्वामी अवधेशानंद गिरि का यह संदेश हमें यह सिखाता है कि आध्यात्मिक जीवन केवल ध्यान और साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू—चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक—में संतुलन लाना भी एक प्रकार की साधना है।